अंडरडाग की जीत की कहानी अक्सर हम सब को पसंद आती है…जाने अन्जाने हम अपने आप को अंडरडाग से जुडा महसूस करते है… चाहे वो सिंड्रेला हो या हैरी पाटर, आमिर की लगान टीम हो या हिमेश रेशमिया या ७० के दशक का दबा कुचला एंग्री यंग मैन। आम आदमी, याने की अपन जैसे लोग, उनमें अक्सर अपनी छवि देखते हैं..क्योंकि जिन्दगी में सबने कभी ना कभी कामयाबी का सपना पाला होता है और वो अंडरडाग शायद उसी सपने को जी रहा होता है। और अगर आप इसे १५ अगस्त के मौके पर इसे देशभक्ति की चाशनी में लपेट दें तो कहना ही क्या….क्या स्वाद आयेगा।
तो जब शाहरुख खान १६ लडकियों की एक बिखरी हुई टीम को, बिना हाई-फाई संसाधनों के, हाकी का (जो कि खुद भी भारत में अंडरडाग ही है) विश्वकप दिलाने निकल पडते हैं…तो दर्शक अपने आप को उनके साथ कदम मिलाता हुआ पाता है.. ये बात सिनेमाघर में गूंज रही तालियों और सीटियों से साफ पता चलती है (ये अलग बात है कि ताली बजाने वालों में से अधिकतर के कभी हाकी स्टिक पकडी भी नही होगी..पर उससे क्या फर्क पडता है..अधिकतर ने कभी पेडों के इर्दगिर्द घूम कर हिरोइन के साथ कर नैन मटक्का भी तो नही किया होगा..।)
ये है चक दे इंडिया…. कोच कबीर खान की कहानी, जिसे सात साल पहले विश्वकप हाकी में पाकिस्तान के खिलाफ हुए फाइनल में गोल ना कर पाने पर गद्दार करार दे दिया गया..और जो अपने आप को साबित करने के लिये उस टीम का खेवनहार बनता है..जिसे एसोसिएशन विश्वकप में भेजने तक को राजी नही।
बाकी घटना क्रम का अंदाजा आसानी से लगया जा सकता है, सो कुछ कहने की जरूरत नही है। फिर भी थोडा बहुत कहेंगे…जो नजर में चढा।
फिल्म की जान है टीम की लडकियाँ…ज्यादातर नये चेहरे..और १६ लडकियों को ढाई घंटे में बराबर समय देना कठिन काम था… और वो तब, जब आपको शाहरुख को भी समय देना हो ..पर निर्देशक ने बखूबी काम किया है..और फिल्म खत्म होते होते आपको लगभग सभी १६ खिलाडियों के नाम याद हो जायेंगे, कुछ एक तो लम्बे समय तक याद रखे जाने लायक हैं। फिल्म में कुछ जगह झोल जरूर हैं पर रफ्तार ऐसी है आप कभी भी बोरियत महसूस नही करते। गाने भी सिनेमाघर में तीन ही दिखाये गये, और सब पार्श्व में बजे सो संगीत भी फिल्म की गति में कहीं रुकावट नही लाता, एक खेल फिल्म के लिये जरूरी थी….शीर्षक गीत और सूफियाना अंदाज का “मौला मेरे ले ले मेरी जान” जरूर पसंद आयेंगे।
इनके बाद हैं शाहरुख(जी हाँ, पहला नम्बर तो अपन टीम को ही देंगे) …. जो अभिनय में दुहराव के बावजूद अच्छे लगते हैं। दुहराव इसलिये कहा, कि संवाद आदायगी ऐसी कि…’चक दे इंडिया’ की टीम को फटकारता/जोश दिलाता कोच हो या ‘मुहब्बतें’ में प्रेम का पाठ पढाता आशिक या ११ देशों की पुलिस से बतियाता ‘डान’…सब एक जैसे लगते हैं।
कुछ मुद्दे अच्छे छेडे हैं फिल्म में- क्षेत्रवाद, खासकर जब मिजोरम की लडकी कहती है “हमारे देश में ही हमें मेहमान बनायेंगे तो भला अच्छा लगेगा ?“; मीडिया पर, मीडिया, जो अपनी खबर बनाने के लिये किसी को जीरो/हीरो बना देता है; खेल संघों के पदाधिकारी और उनके खेलों के प्रति रवैये पर; खेल में, परिवार में, दिल्ली के मेक्डोनाल्ड रेस्त्रां में…महिला बनाम पुरुष; और हाँ क्रिकेट बनाम हाकी भी।
कुल मिला कर देखने लायक फिल्म…और हाँ साथ में यशराज बैनर की आने वाली फिल्म “लागा चुनरी में दाग” का ट्रेलर भी देखने को मिला।
चलते चलते– रात को एक बजे फिल्म देख कर जिस आटो से घर पहुँचे..उस आटो वाले का कहना था..”२ साल बाद मैने कोई फिल्म देखी है..मैं ज्यादा फिल्म नही देखता ,पर इस फिल्म को देखने के लिये एक अन्य साथी ने मुझसे कहा था। बहुत अच्छी पिच्चर है साहब…आप पूरा फैमीली के साथ बैठकर देख सकते हैं…कोई टुच्चापन नही है फिल्म में….”
अपना मानना है कि जो फिल्म आटो वालों को पसंद आ जाती है, वो जरूर हिट होती है। 🙂
पुनश्चः – मीर रंजन नेगी, जिनकी जिन्दगी से यह फिल्म प्रेरित है, के बारे में यहाँ पढें ।
अब आप इतनी तारीफ़ कर रहे हैं, तो यह फ़िल्म देखनी ही पड़ेगी।
चलिए अच्छा है..ऍसी फिल्में चल पड़े तो और भी बनेंगी !
जरुर देख लेंगे. 🙂
मुबारक हो, इस अंधेरे समय में कोई तो ठीक ठाक फिल्म आई । वरना रंगीन नया दौर से कमा चल रहा था ।
Itniiii tarif……..lagta hai program banana hi hoga……
Kuchh bhi kahiye, but East or West , India is Best!!
Aapne movie ko bakhubi blog per utara hai. I liked it……….
प्रतीक, मनीष, समीर जी, यूनुस भाई, रश्मि, रेणु….टिप्पणी के लिये धन्यवाद।
I am certainly liking the pictures that you put on ur blog homepage.. As of movie have not seen it yet, but would go for – story and message and of course the new girls.. have heard they have really acted nicely.. and you are saying the same.
Nitin@Bagla tum to dino din ek acche samikshak bante ja rahe ho, agar jyada samay blog par bitane ke liye ye naukri chuti to u know which profession to opt 🙂
Akhand@ “and of course the new girls”-hum kuch nahin kahenge..
[…] 2007 by Nitin Bagla ‘चक दे इंडिया’ देख कर मैने लिखा था कि ..”अंडरडाग की जीत की कहानी अक्सर […]
very intrested movie