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Archive for अगस्त 26th, 2007

ज़िन्दगी चल रही है। हमारे लिये, जो थोडे खुशकिस्मत थे कल शाम को…। पर जिन्होने अपने खोये हैं इन धमाकों मे…उनके लिये तो शायद सब कुछ बिखर गया। पूना से आये हुए वो छात्रों के परिवार, यो टी. वी. पर बिलख बिलख कर रोती दिखाई दी वो माँ और बाकी लोगों के  परिवार, यार दोस्त….।

सुबह सिकंदराबाद गया था, हालांकि रविवार को वैसे भी सडकों पर आवाजाही कम होती है, और दुकाने भी बन्द रहती हैं…पर फिर भी रोजमर्रा की तरह आवागमन था सडकों पर। (शाम को पता चला कि नजदीक से सारे शापिंग माल, जो आमतौर पर  रविवार को खुले रहते हैं, आज बंद थे।)

कुछ सावधानियां बरतनी होंगी शहर को। सप्ताहांत पर हैदराबाद सेन्ट्रल, बिग बाजार, प्रसाद, ईट स्ट्रीट आदि जगहों पर पैर रखने की जगह नही होती, सांस लेना मुश्किल। सुरक्षा के इन्तजाम वाकई बहुत ढीले हैं, कोई भी कुछ भी लेकर घुस सकता है। कुछ दुर्घटना हो जाये, तो ज्यादा लोग भगदड से हताहत हो जायेंगे..ऐसी संरचना है इन जगहों की। हालांकि लुम्बिनी पार्क, गोकुल चाट और मक्का मस्ज़िद…अपेक्षाकृत खुली जगहें थी..पर अगली बार(भगवान ना करे) गर निशाना कोई बन्द जगह/बाजार/काम्प्लेक्स हुआ तो परिणाम और बुरे होंगे।

पिछली बार हैदराबाद के बारे में सात पसंदीदा बातें लिखी थीं..तो कहा गया था कि दोष भी तो गिनाओ। शायद एक दूसरे पर भरोसा करना और मिल जुल कर रहना इस शहर का सबसे बडा दोष है। शांत…सुस्त शहर है, लोग अपने में मगन। क्या बदलें? सिनेमाघर में जायें तो अपने बाजू वाले को शक की निगाह से देखें? या बाजार में खरीदरी करने जायें तो लोगों से बच बच कर निकलें? लोगों को देख कर मुस्कुराना छोड दें या तहज़ीब से बात करना छोड दें? ऐसा करना तो शायद उन लोगों के मंसूबे कामयाब कर देना होगा। ऐसा हरगिज़ नही करेगे।

जिन्दगी चल रही है।

कल ये भी तो हो सकता था, हम लुम्बिनी पार्क में शो देख रहे हो सकते थे..या बम किसी सिनेमाघर में फटा हो सकता था जहाँ शनिवार/रविवार को अक्सर चले जाया करते हैं।  😦

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