सागर जी ने जब थोक में अपने शिकार बनाये थे तो मुझे भी लपेटे मे ले लिया था…८ सवाल पूँछे हैं जबकि चलन ५ का ही है । इंजिनियरिंग की परीक्षा में हमारे यहाँ ८ प्रश्न आते थे पेपर में, जिनमें से किन्ही ५ का उत्तर हमें देना होता था। प्रति प्रश्न २० नम्बर और उस १०० में से भी पास होने के लिये मात्र ३३ नम्बर की जरूरत होती थी । आदत कुछ-कुछ अभी भी वैसी ही पडी हुई है सो उसी हिसाब से प्रश्न पत्र हल करते हैं..३३ का लक्ष्य रख कर, इधर उधर ताका-झांकी करते हुए.. 🙂
पहला सवाल: आपकी दो प्रिय पुस्तकें और दो प्रिय चलचित्र (फिल्म) कौन सी है?
प्रश्नकर्ता के चिट्ठे से ही चेंपता हूं…
“इस प्रश्न में दो की सीमाओं में बंधना मुझे मंजूर नहीं और वैसे भी दो का चयन करना बहुत मुश्किल है।”..डान की भाषा में कहूँ तो मुश्किल ही नही नामुमकिन भी है….काफी पहले पढने का शौक नाम से एक लेख लिखा था..उसकी दूसरी किस्त आज भी इंतजार कर रही है, लेकिन पास होने लायक जवाब वहाँ मिल ही जायेगा ।
फिर भी ये बता सकता हूँ कि किस तरह की पुस्तकें पढना पसंद करता हूँ । गीताप्रेस, गोरखपुर का तमाम साहित्य मुझे बहुत प्रिय है, डोमेनिक लेपायर की सभी पुस्तकें जिनमें उन्होने ऐतिहासिक घटनाओं का काफी शोधपरक चित्रण किया है मुझे काफी अच्छी लगी (Freedom at Midnight, Paris is Burning, Oh!Jerusalam आदि)। आत्मकथाएं मुझे बहुत अच्छी लगती हैं..(हाल ही में पढी स्टीव वा की “Out of My Comfort Zone”) , और सुरेन्द्र मोहन पाठक के तमाम जासूसी उपन्यास।
फिल्में….हल्की फुल्की फिल्में देखना पसंद करता हूँ..बहुत भारी ना हों..मनोरंजन करें..ना कि उदास कर दें…वैसे संजीव कुमार-जया भादुडी की “कोशिश” मुझे बहुत पसंद है..दोनो के अभिनय की वजह से….अमोल पालेकर-उत्पल दत्त की फिल्में, फारुख शेख दीप्ती नवल की २-३ फिल्में ।वैसे इस मुद्दे पर अनुगूंज में एक चर्चा हो चुकी है कि हम फिल्में क्यो देखते हैं । थोडे जवाब वहाँ भी मिल जायेंगे।
दूसरा इन में से आप क्या अधिक पसन्द करते हैं पहले और दूसरे नम्बर पर चुनें – चिट्ठा लिखना, चिट्ठा पढ़ना, या टिप्पणी करना, या टिप्पणी पढ़ना (कोई विवरण, तर्क, कारण हो तो बेहतर)
पहले चिट्ठा पढना – पढने का तो शौक है ना…और कुछ दिमाग चलाना भी नही होता, और इतनी अच्छी अच्छी सामग्री मिलती है ।
फ़िर टिप्पणी पढना। वजह ? किसी क्रिया की कितनी, और किस किस तरह की प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं, जानने में बहुत मजा अता है, और मेरी सोंच-समझ के दायरे को बढाती है, दिमाग की खिडकियाँ खोलती हैं…
टिप्पणी करना – तीसरे नम्बर पर है…कई बार कई चिट्ठे बहुत अच्छे लगते हैं, पर समझ नही आता कि क्या लिखूँ, कई बार ऐसा हुआ है कि ’टिप्पणी करे” पर क्लिक किया, बहुत देर सोंचा कि क्या लिखूं, और फिर बन्द कर दिया । सोंचता हूं कि सिर्फ यह लिख देना कि “बहुत अच्छा लिखा”, लिखने वाले के साथ अन्याय होगा।
और फिर चिट्ठा लिखना, हाथ पैर हिलाने पडते हैं, दिमाग चलाना पडता है । समय भी निकालना पडता है । कई बार हुआ है कि घूमते फिरते कोई विचार आया है लिखने को, लेकिन शाम तक गायब । वैसे ये क्रम इसलिये भी ठीक ही है कि अपनी चिट्ठाकारी का भी यही क्रम रहा है, पहले चिट्ठे और टिप्पणियां पढना शुरू की, फिर टिप्पणी करना..और फिर खुद का चिट्ठा बनाया ।
तीसरा आप किस तरह के चिट्ठे पढ़ना पसन्द करते हैं?
अगर समय इजाजत देता है तो लगभग हर चिट्ठा पढता हूँ, लेकिन पसंद पूँछी जाये तो पहले नम्बर पर संस्मरणात्मक चिट्ठे आते हैं । कई लोगों को पढ कर लगता है कि खुद की जिन्दगी पढ रहे हैं, ये तो अपने साथ भी हुआ था (या अपने साथ भी नही हुआ था 😉 ) या इस तरह की खामी/खूबी वाले सिर्फ हम ही नही हैं । उसके बाद हास्य व्यंग्य आते हैं । और साथ ही सम सामयिक मुद्दों पर लिखे चिट्ठे । भारी कविताएं बिल्कुल हजम नही होती…उलझ कर रह जाता हूँ । तकनीकी चिट्ठे कई बार कमाल की जानकारी दे जाते हैं ।
चौथा चिट्ठाकारी के चलते आपके व्यापार, व्यवसाय में कोई बदलाव, व्यवधान, व्यतिक्रम अथवा उन्नति हुई है?
व्यापार, व्यवसाय पर कोई फर्क नही लेकिन खुद पर बहुत फर्क पडा है । दुनिया को, घटनाओं को देखने का नजरिया बदला है । अपनी सोंच का दायरा बढा है । पहचान का दायरा बढा है । मुझे मालूम है कि हिन्दुस्तान/दुनिया के अनेक शहरों में मेरे जानने वाले रहते हैं…कभी मिला नही तो क्या हुआ। साथ ही यह भी कि जिन्दगी में बहुत कुछ देखना और करना बाकी है ।
अंतिम सवाल…. . आप किसी साथी चिट्ठाकार से प्रत्यक्ष में मिलना चाहते हैं तो वो कौन है? और क्यों?
सबसे मिलना चाहूँगा..क्योंकि ऐसा कोई भी नही है जिससे ना मिलना चाहूँ 🙂
सागर जी से हैदराबाद में और बैंगानी परिवार से अहमदाबाद में(विवरण लिखना बकाया है) मिल चुका हूँ । और भी जिन जिन शहरों में जाने का मौका मिलेगा वहाँ के चिट्ठाकारों से जरूर मिलूंगा । वैसे अभी हैदराबाद के ही सारे लोगों से नही मिल पाया हूँ …
तो सागर जी ..८ में से ५ के जवाब हमने दे दिये….पास हम हमेशा होते आये हैं..इस बार भी हो जायेंगे ये हमें अच्छे से मालूम है. टाप करने की अपनी कोई इच्छा है नही 🙂 कभी रही भी नही । और हाँ अगर पास ना किया…..तो जाओगे कहाँ..एक ही शहर के बाशिन्दे हैं.. निपट लेंगे.. 😀
मैं आगे किसी को टैग नही कर पा रहा हूँ क्योंकि मेरी जानकारी में लगभग सारे सक्रिय चिट्ठाकार लपेटे में आ चुके हैं और हम “शिकार का शिकार नही करेंगे 😀 ”
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आप सब को होली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें…
आपकी होली रंगीली, सजीली, छबीली, तडकीली- भडकीली, रसीली, लाल-गुलाबी-नीली-पीली, सूखी-गीली हो ऐसी हमारी कामना, मनोकामना, मंगलकामना है…
चलते चलते होली का एक रसिया (इस बार घर ना जा सकने की वजह से खुद ने मन ही मन गा लिये..
होरी खेलूँगी श्याम संग जाय,
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥१॥
फागुन आयो…फागुन आयो…फागुन आयो री
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री
वो भिजवे मेरी सुरंग चुनरिया,
मैं भिजवूं वाकी पाग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥२॥
चोवा चंदन और अरगजा,
रंग की पडत फुहार ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥३॥
सास निगोडी रहे चाहे जावे,
मेरो हियडो भर्यो अनुराग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥४॥
आनंद घन जेसो सुघर स्याम सों,
मेरो रहियो भाग सुहाग ।
सखी री बडे भाग से फागुन आयो री ॥५॥
चलिये हम आप को निराश नही करेंगे, आप ने ३३ मांगे थे पूरे ३३ अंक आपको दिये, जाओ अब तो खुश हो ना? 🙂
यार अब आलस्य छोड़ो और बाकी की पोस्ट जल्दी पूरी करो।
नितिन भाई, अपनी सिर्फ नाम राशि ही नहीं, पसंद भी मिलती है। अच्छा लिखा है।
होली की शुभकामनाएँ ।
उत्तर भी अच्छे लगे,गीत भी और आपके पन्ने के डैजी के फूल भी !
घुघूती बासूती
जबाब के साथ साथ गीत बहुत बेहतरीन लाये हैं, बधाई.
होली की अनेकों शुभकामनायें.
होली की रंग बिरंगी अनेकों शुभकामनायें.
सागर जी, पास करने का शुक्रिया । पास होने के बाद कभी पढाई करते देखा है किसी को 🙂
नितिन जी, अच्छा लगा जानकर
घुघुती जी, समीर जी, होली की आपको भी शुभकामानएं ।गीत अच्छा लगा, जानकर खुशी हुई । घुघुती जी, मुझे नही मालूम था कि इन्हे डैजी के फूल कहते हैं ।
संजय जी, होली की बधाई ।
ati uttam chitha,kahi to tune bila taank jhaank ke jawab diya prasan patra ka.meri taraf se A-