द्वितीय विश्व युद्ध के काफ़ी बाद तक विभिन्न अंग्रेजी(अमेरिकन व ब्रिटिश दोनों) रोमांचक उपन्यासों का आधार द्वितीय विश्व युद्ध पर आधारित कहानियाँ ही होती थी, कि किस प्रकार मित्र देशों के सैनिकों ने किसी पहत्वपूर्ण चौकी पर कब्जा किया या कोई महत्वपूर्ण ओपरेशन कामयाब किया या दुश्म की कोई भारी चाल असफ़ल कर दी जो अन्यथा युद्ध के परिणामों पर असर डाल सकती थी ।
फ़िर वक्त आया शीत युद्ध का, विश्व दो धडों में बंट गया था अब अंग्रेजी में छपने वाले हर दूसरे तीसरे उपन्यास की कहानी रशिया (सोवियत संघ),क्रेमलिन और अंग्रेज जासूसों के इर्दगिर्द घूमने लगी चाहे तो इनके बीच में कोई कोई प्रेम कहानी भी घुसा दी जा सकती थी।
अब तो शीत युद्ध भी खतम हो गया…सोवियत संघ के हो गये टुकडे..तो अब जमाना आया है अफ़गानिस्तान एवम इराक युद्ध,अलकायदा और इस्लामी आतंकवाद का । अफ़गानिस्तान-इराक, जेहाद, तालिबान, ९/११ ये सब लेखकों के लिये नया मसाला है ।
इस फार्मूले को आप हालीवुड फ़िल्मों पर भी ज्यों की त्यों लागू कर सकते हैं, भई, पटकथा लेखक भी उपन्यास लेखक से कम थोडे ही होता है । ये बात एक और जगह लागू होती है…उसके बारे में पोस्ट के अंत में ।
तो जैसा के नाम से ही जाहिर है, मशहूर ब्रिटिश लेखक फ्रेड्रिक फ़ोरसिथ (Frederick Forsyth) का नवीनतम उपन्यास ‘द अफ़गान‘ (The Afghan) अफ़गानिस्तान की ही पृष्ठभूमि पर आधारित है…उपन्यास की कहानी कुछ इस तरह से है ।
ब्रिटिश जासूसी संस्था SIS (Secret Intelligence Service) को पाकिस्तान में एक कमांडो ओपरेशन से मिले दस्तावेजों से पता चलता है कि अलकायदा ९/११ से भी बडा और भयानक हमला करने की तैयारी में है..हमला कहां कब कैसे होगा इस बारे में कुछ भी जानकारी नही मिल पाती…ये जानकारी बडे भैया..चौधरी CIA (Central Intelligence Agency)..अमरीका वालों को भी बताई जाती है।
योजना ये बनाई जाती है, कि अलकायदा में पश्चिम का एक जासूस भेजा जाये..इस काम के लिये चुना जाता है ब्रिटिश माइक मार्टिन को…जो पहले भी विभिन्न ओपरेशन्स के तहत अफ़गानिस्तान एवं अन्य देशों में कमांडो कार्यवाही का हिस्सा रह चुका है, जो कभी इराक में पला बढा था और धारा प्रवाह अरबी बोल सकता है । अमरीका के पास एक अफ़गान इज्मत खान भी है, जिसे पाँच साल पहले अफ़गानिस्तान में पकडा गया था..किन्तु जिसने कभी मुँह नही खोला, किंतु ये बात एजेंसियों को शर्तिया तौर पर मालूम है कि इज्मत खान का आतांकवादियों में बडा नाम है और वो एक बार बिन लादेन से मिल भी चुका है…इज्मत खान की माफ़ी एवं रिहाई का झूठा नाटक करके उसकी जगह मार्टिन को भेज दिया जाता है..ताकि वो उस हमले को नाकाम कर सके जिसकी भनक तो इन जासूसी एजेन्सियों को है, पर जिसके बारे में वो कुछ नही जानते ।
माइक मार्टिन पर आगे क्या बीतती है,इज्मत खान का क्या होता है, वो हमला कौन सा है जो ९/११ से भी भयावह हो सकता है और क्या माइक मार्टिन उसे नाकाम कर पायेगा(आपको क्या लगता है, उपन्यास का हीरो कभी नाकाम होता है ?:))ये सब तो आप उपन्यास में ही पढें…यहाँ ज्यादा कुछ लिखना उचित नही होगा ।
अब उपन्यास के बरे में मेरी राय… फ़्रेड्रिक फ़ोरसिथ अंग्रेजी रोमांचक (Thriller) एवं राजनीतिक उपन्यासों के अग्रणी लेखक माने जाते हैं..वैसे इससे पहले मैने इनका मात्र एक ही उपन्यास पढा था, The Devil’s Alternative…और ये वाकई बहुत तेजरफ़्तार और रोमांचक उपन्यास था…मुझे बहुत अच्छा लगा था । लेकिन इस उपन्यास(The Afghan) से मुझे बहुत निराशा हुई । कहानी का प्लाट और खाका तो फ़ोरसिथ ने बडा अच्छा तैयार किया है किन्तु उस रफ़्तार और रोमांच को वे कायम नही कर पाये। पहली बात तो ये कि सब कुछ अपने आप होता चला जाता है, हीरो को अपनी हीरोगिरी दिखाने का मौका ही नही मिलता, लगता है कि बस भागभरोसे गाडी खिंचती जा रही है और अंत तो एकदम फ़ुसकी सा हो गया ।अभी अभी पढ रहे थे..और ये क्या..अरे कहानी खत्म भी हो गई !!!..मिशन ओवर एंड आउट…कुल मिला कर उपन्यास फ़ोरसिथ की प्रतिष्ठा के अनुरूप नही था । पिछले काफ़ी हफ़्तों से ये उपन्यास Thrillers की बेस्ट्सेलर सूची में सबसे ऊपर चल रहा है,शायद लेखक के नाम की वजह से, लेकिन मुझे तो इससे निराशा ही हुई।
एक बात जिस पर इस उपन्यास में बहुत जोर डाला गया वो ये, कि ९/११ के बाद अमरीका एवं ब्रिटेन की जासूसी एजेन्सियों के काम करने में भारी बदलाव आया है और किसी को भी कोई भी सूचना मिलने पर वो तुरन्त सभी विभागों में बांटी जाती है (९/११ की एक वजह इन एजेन्सियों में आपसी तालमेल की कमी भी माना जाता है.. )
एक बात कहनी होगी, रीयल लाइफ़ में अमरीका/ब्रिटेन चाहे कितने भी दिन अफ़गानिस्तान में नाकामियों का मुँह देखत रहें, ओसामा बिन लादेन के बारे में जानकारी प्राप्त करने में असफ़ल रहें…ये काम इनके किसी उपन्यास लेखक को सोंप दीजिये या किसी फ़िल्म के पटकथा लेखक को…वो इसे चुटकियों में करवा देंगे..अपने हीरो से
और अब पहले पैरा में की गई बात। हथियार निर्मात्री कंपनियों पर भी वो बात एकदम सटीक लागू होती है…प्रथम विश्व युद्ध, द्वितिय विश्व युद्ध, फ़िर शीतयुद्ध में तो हथियारों की दौड और होड अपने चरम पर पहुँच गई…गोला बारूद असला, राइफ़ल-मशीन गनें, जहाज, फ़ाइटर प्लेन और पनडुब्बियाँ और तरह तरह के जासूसी उपकरण….क्या क्या नही है । मेरा मानना है कि जब शीतयुद्ध के खात्मे(१९९८९-९०)से लेकर ९/११ तक इन कंपनियों का धंधा बडा मंदा चला होगा…बिक्री एकदम बैठ गई होगी..और फ़िर तभी शुरू हो गई ‘आतंकवाद के खिलाफ़ जंग’..और तब से अब तक क्या हो रहा है ये तो हम सब देख ही रहे हैं ।
वैसे क्या आपको मालूम है कि हमारे देश का भी बजट का एक बडा हिस्सा रक्षा पर खर्च होता है..जिसमें सैन्य रख रखाव के अलावा उक्त वस्तुओं की बडी खरीद भी शामिल है..??? (२००५-०६ में भारत का रक्षा बजट ८३,००० करोड रुपये था। ये पिछले वर्ष के मुकाबले ७.८ % ज्यादा था, और भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का २.३७ प्रतिशत था । )
मैंने इनकी The day of jackal पढ़ी थी और पिक्चर भी देखी थी जो बहुत अच्छी लगी थी
[…] नितिन मशहूर ब्रिटिश लेखक फ्रेड्रिक फ़ोरसिथ के ताज़ा उपन्यास ‘द अफ़गान‘ की समीक्षा कर रहे हैं. […]
Nitin,
I completely agreed with your review,i also felt the same, the plot is too slow,some things dont make sense why is their so much elaboration of the afghans life,the details which explain Martin making his cottage just kill the speed of the book.the end is too vague,overall the book is really a big letdown.
in opinion The Day of Jackal is his best work so far, though all his books are nonetheless entertaining..
ह्म्म..लगता है ‘day of jackal’ पढनी पडेगी…ढूंढते हैं..
फ़्रेडरिक फ़ोर्सिथ मेरे भी पसंदीदा लेखकों में से हैं। अब उनके उपन्यासों में वो बात नहिं रही। शायद उम्र के साथ उपन्यास के लिये रिसर्च करना कम कर दिया है। “Fist of god”, “Avenger” आदि उपन्यास भी आधे मन से लिखे लगते हैं। पुराने उपन्यास जैसे डे औफ़ जैकाल या डेविल्स अल्टरनेटिव कमाल के हैं। जैकाल पे तो दो फ़िल्में भी बन चुकि हैं। पर उनमें वो बात नहीं। जैकाल के दिमाग में क्या चल रहा है, आप फ़िल्म में नहिं बता सकते। और बस यहिं वो मारी जाती हैं। ब्रूस विलिस वालि फ़िल्म तो मज़ाक है किताब का। डेविल्स.. कि ये पंक्तियां याद आति हैं जो कि मुख्य किरदार आन्द्रेइ के लिये लिखि गयि थी। याद से लिख रहा हूं, सो शायद पूरी सहि ना हों।
“All men dream in night. But dangerous are the man who dream with open eyes. Because in he realm of the day…..”
qmov cum
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passion flower seed
–>passion flower seed
फ्रेडरिक के प्रायः सभी आरंभिक उपन्यासों को मैंने पढ़ा है, और इसे भी पढ़ने की सोच रहा था. पर, चलिए, आपने बता दिया कि यह तो बस फुस है… तो फिर क्या पढ़ना.
वैसे भी एक लेखक हमेशा तो अपना बेहतरीन नहीं लिख सकता ना? जेम्स हेडली चेइज़ जैसे लेखक कम ही होते हैं – जिनकी हर किताब जानदार रही थी.