ग्रेगरी डेविड राबर्ट्स (Gregory David Roberts) की ‘शांताराम’ (Shantaram) २००३ में प्रकाशित हुई थी। बिना किसी प्रचार-प्रसार के ही यह किताब बहुत जल्द लोकप्रिय हुई और आज का ‘द हिन्दू’ देखता हूं तो अभी भी बेस्ट सेलर्स की सूची में जगह बनाये हुए है। और हाँ, पुस्तक पर इसी नाम से एक फिल्म भी बन रही है, जिसमें केन्द्रीय भूमिका हालिवुड अभिनेता जानी डेप (Johnny Depp) कर रहे हैं।
शांताराम मुम्बई में बाहर से आने वाले सैलानियों से शुरू होती हुई आपको कई जगह ले जाती है..मसलन मुम्बई की झोपडपट्टी, महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव, मुम्बई की आर्थर रोड जेल,गोवा , मुम्बई का माफिया तंत्र….और फिर वाया पाकिस्तान होती हुई अफगानिस्तान। अफगानिस्तान से हम वापस मुम्बई आते हैं, और यहाँ कहानी की परिणीति होती है।
मुख्य पात्र लिन आस्ट्रेलिया से भागा हुआ एक अपराधी है जो अपनी भगौडी जिन्दगी के एक पडाव के दौरान मुम्बई पहुँचता है, और यहाँ उसे कई दिलचस्प लोग, और अच्छे दोस्त मिलते हैं। जैसा कि मुम्बई पर लिखी हर किताब या हर फिल्म कहती है, कि ये शहर अपको अपनी और खींचता है, लिन के साथ भी ऐसा ही कुछ होता है। कुछ दिन एक होटल में रहने के बाद, वो एक स्लम में रहने लगता है और वहां एक क्लिनिक चलाता है (कहानी का यह हिस्सा डोमिनिक लेपायर (Dominique Lappire) की सिटी आफ जाय (City of Joy) से काफी मेल खाता है)। उसे प्रभाकर मिलता है, जिसकी सच्चाई और निश्छलता उसे लिन का सबसे अच्छा मित्र बना देती है, उसे कार्ला मिलती है जिससे वो मुहब्बत करने लगता है पर जिसके जादूई व्यक्तित्त्व को वो अंत तक नही समझ पाता । उसका परिचय मुम्बई के माफिया डान अब्दुल कादर खान से होता है जिसमें वो अपने पिता को देखता है और उसके लिये काम करने लगता है। इसी बीच कुछ स्थानीय लोगों से दुश्मनी के चलते उसे काफी समय मुम्बई की आर्थर रोड जेल में बिताना पडता है। इससे आगे कहानी अफगानिस्तान पहुँचती है जहाँ वो अब्दुल कादर खान, जो कि एक अफगान है, के साथ दुश्मनों से लडने जाता है। कहानी का केनवास बहुत वृहद है, और हो सकता है कहीं कहीं आपको ये बेवजह फैलती सी लगे।
किताब का मुख्य आकर्षण जो शुरू से आखिर तक बांधे रखता है, वो है मानवीय रिश्तों का तानाबाना जो लेखक ने इतनी खूबसूरती से बुना है, कि कई जगहों पर आप पात्रों को अपने सामने खडा पाते हैं। मैने पहुत कम फिक्शन ऐसे पढे हैं जिनमें चरित्र चित्रण इतना सालिड हो, जिसके पात्र इतना प्रभावित करते हों और जिसके संवाद दिल को ऐसे छू लें कि आप उन्हे अलग से लिख कर रखें। मेरी राय: एक जरूर पढा जाने लायक उपन्यास। कुछेक बेहतरीन सवादों की नजीरें पेश हैं :
A lot of the bad stuff in the world wasn’t really that bad, until someone tried to change it. (p. 97)
Sometime you have to surrender before you win. (p. 115)
When the wish and the fear are exactly the same, we call the dream a nightmare. (p 151)
The worst thing about corruption as a system of governance is that it works well (p 186)
The justice is not only the way we punish those who do wrong. It is also the way we try to save them (p 229)
Poverty and pride are devoted blood brothers until one, always and inevitably, kills the other (230)
People always hurt us with their trust…. The surest way to hurt someone you like, is to put all your trust in him (306)
Mistakes are like bad loves. The more you learn from them, the more you wish they had never happened.
पुस्तक के आवरण के अनुसार, शांताराम, लेखक ग्रेगरी डेविड राबर्ट्स के जीवन की हकीकत पर आधारित है (यानि सच्ची कहानी है)। यह पुस्तक लेखक ने तीन बार जेल में लिखी, (दो बार जेल गार्ड्स के हाथ पड जाने के पर नष्ट कर दी गई।..विकिपीडिया पर किताब की लिंक भी यही कहती है। अगर यह सच है, तो वाकई लेखक की अदम्य इच्छाशक्ति का परिचय है। लेकिन जो बात मुझे खटकती है वो ये कि अगर किताब की सारी बातें सच हैं तो लेख को अभी जेल में ही होना चहिये लेकिन उनकी आफिशियल वेबसाइट के अनुसार तो वो अच्छे से घूमफिर रहे हैं। क्या कोई इस बारे में बता सकता है कि ये कहानी वाकई उनकी जिन्दगी पर आधारित है, अथवा कल्पना ही है?
चलते चलते:
दो महीने से ऊपर हो गया शांताराम पढें…तुरंत लिखना चाहा था, लेकिन परिस्थितियां कुछ ऐसी बनी कि नही लिख पाया। जैसा कि ऊपर लिखा, इतना बडा केनवास है किताब का, कि मुझे पक्का पता था कि अगर टाल दिया तो बाद में लिखना मुश्किल होगा। और वाकई, तरीके से लिखना बहुत मुश्किल हो रहा है..इसलिये जो कुछ कच्चा पक्का बन पाया है, हाजिर है।
अच्छा किया, न लिखने से लिखना भला।
पढ़ कर देखूंगा।
आपने अच्छा किया बता कर. बहुत दिनों से इस प्रकार की पुस्तक नहीं पढ़ी है. मौका मिला तो पढूंगा.
I tried to read that but could not go past 30-40 pages.. but it is still in my reading list.. will finish some time..
I liked the writing style of this guy.. cannot say much about the content.
it is realy great book yaar, am still reading it. Somewhere he says in intial pages writing was his favorite thing from childhood.
I thought he served jail term in australia again after mumbai and then again came back.. but you have told the story to me… but book is still a magnet.
Nitin
Excellent book, just the Afghanistan episode is a bit drag and looks a bit unreal.What i loved about the book was the way he has described and developed even small characters, the hotel manager, Prabhakars family, the foreign club. You just feel them near.
As far as my knowledge is he was caught and deported to australia where he spent 9 yrs before getting released. I even went to hear him in the IIT fest .