प्रेमी प्रेमिका, प्यार तकरार, घरवालों/खलनायक से जंग, थोडी धां धूं और थोडी फ़ां फूं और अन्त में हीरो हिरोइनी का मिलन..और पिक्चर समाप्त। १०० में ८० बेईमान वाले देस की फ़िल्म इन्डस्ट्री की १०० में ८० फिल्में भी शादी पर आकर खत्म हो जाती है । लेकिन जिन्दगी…सही मायनों में वो तो शादी के बाद शुरु होती है।
शादी के बाद की जिन्दगी तो नही, पर तुरन्त बाद का एक छोटा सा हिस्सा, जहाँ पति पत्नि एक दूसरे को समझने की पहली कोशिश करते हैं और पहली बार एक दूसरे को जानते हैं (बोले तो ह्ल्दीनून या हनीमून) लेकर आयी हैं रीमा कागती, फिल्म “हनीमून ट्रेवल्स प्रा. लि. ” में । फिल्म में छः जोडे हैं, अगर सलाम-ऐ-इश्क देखी हो तो छः जोडों के नाम पे घबराइयेगा नही..ना तो फिल्म उतनी लम्बी है और ना ही कहानी को इतना उलझाया कि सुलझ ही ना सके ।
हाँ तो साहब फिल्म के मुख्य किरदार हैं छः शादी शुदा जोडे, एक टाटा स्टारट्रेक बस और रेडियो मिर्ची (अच्छी “visibility” मिली दोनो को) । सब कलाकारों के नाम यहाँ लिख नही पाऊँगा, मुझे याद भी नही हैं । जो चीज इन सभी को जोडती है वो है शादी के बाद रिश्तों में आने वाला परिवर्तन। ऐसा क्यों होता है कि शादी के बाद बहुत कुछ ‘बदल’ जाता है । तुम पहले तो ऐसे ना थे, पहले तो ऐसे करते थे, पहले तो ये था अब वो है आदि आदि… । हमारी अभी नही हुई है सो हमे इस बारे में कुछ नही मालूम 🙂 ।
हर किरदार की अपने कुछ उलझने है, कुछ सपने हैं और कुछ हकीकते हैं । एक अधेड जोडा है जिसकी दूसरी शादी है, और जो अपनी जिन्दगी में हुए पुराने दर्दनाक वाकयों को भूलना चाहता है, एक खालिस पंजाबी लडकी जो खूब सपने देखती है और खूब बोलती है, पर पति है कि उसे कोई ‘और’ ही गम है, एक बंगाली जोडा जहाँ पति कुछ ‘कंजरवेटिव’ किस्म का है, और पत्नि है कि खुले आसमान में उडना चाहती है, एक गुजराती जोडा जहाँ लडकी की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ हुई है, एक जोडा जो इन्टरनेट के जरिये मिले थे पर जहाँ लडकी एक बार अपना दिल तुडा चुकी है तो लडके को कोई ‘और’ ही आदत है और एक जोडा जो कभी नही लडता हमेशा खुश रहता है और सिर्फ प्यार करना जानता है ।
कहीं कहीं फिल्म यह संदेश देती हुई दिखी कि शादी हमे हकीकत से रू ब रू कराती है और वहाँ सब कुछ रंगीन नही होता । प्यार के साथ तकरार, कभी चमाचम कभी भंगार, कभी छप्पन भोग तो कभी फलाहार होता ही है, अगर ऐसा नही है, अगर सिर्फ प्यार ही प्यार है तो वो परामानवीय है, साधारण इंसान के लिये नही है, सुपर हीरोज़ (जी हाँ, वो भी है फिल्म में) के लिये है ।
एक दो जगह पर कुछ झोल और अतिनाटकीयता छोड दें तो हमे फिल्म अच्छी लगी, एक बार देखने लायक । अच्छी बात, कलाकारों का अभिनय और कहानी का नयापन । साथ ही यह भी कि बस दो घन्टे की फिल्म है, पकने लगें उसके पहले खत्म हो जाती है ।
गुड, टू द प्वाइन्ट समीक्षा। अच्छा लगा।
यदि थोड़ा तकनीकी पहलू (फोटोग्राफी, स्क्रिप्ट, स्क्रीन प्ले, संगीत आदि) पर भी नजर डालते तो समीक्षा अपने आप मे पूर्ण हो जाती।
भई, फिल्म तो हम जरुर देखेंगे। आपकी समीक्षा अच्छी है, लगे रहो नितिन भाई।
देखी जायेगी यह फिल्म!! अब आप अच्छी समीक्षा करें और हम न देखें. 🙂
हम तो इसी में देख लिये सिनेमा !
जीतू जी, आगे से कोशिश रहेगी कि इन पहलुओं पर भी नजर डालूं ।
समीर जी, अनूप जी टिपियाने का शुक्रिया 🙂
mujhe film acchi lagi halka fulka manoranjan,kk menon has acted well overall worth a watch.